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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती

किसान आय वृद्धि और उनके दीर्घकालिक कल्याण के लिए प्रदेश सरकार कृतसंकल्प है। यह देश की पहली सरकार बनी है जिसने किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए वर्ष 2018 में ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना की शुरूआत की है। राज्य सरकार ने कृषि-बागवानी में रसायनों के प्रयोग को कम करने के लिए इस योजना के तहत ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ विधि को लागू किया है। 
प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जी ने प्राकृतिक खेती पर विशेष बल देते हुए वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 15 करोड़ रूपए के बजट का प्रावधान किया है।
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना ने किसान व बागवानों के व्यापक कल्याण एवं समृद्धि के लिए खेती की लागत को कम करने, आय को बढ़ाने, मानव एवं पर्यावरण पर रसायनिक खेती के पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचाने एवं पर्यावरण व बदलते जलवायु परिवेश के समरूप कृषि का मार्ग प्रशस्त किया है। 6 साल पहले शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना के सफल परिणाम देखने को मिल रहे हैं। 

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केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ सम्मिलन
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना को केंद्र सरकार की आतमा परियोजना और भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) के सम्मिलन के साथ चलाया जा रहा है। प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना को जमीनी स्तर लागू करने के लिए आतमा परियोजना के अधीन कार्यरत कार्यबल को उपयोग में लाया जा रहा है तथा उनके वेतन व भत्तों का खर्च भी आतमा परियोजना के अंतर्गत ही वहन किया जा रहा है। इस सम्मिलन से योजना पर राज्य सरकार का बजट 80% तक कम हो रहा है। 

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF)
देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) की शुरूआत की है। इस मिशन के तहत देशभर में प्राकृतिक खेती को किसान समुदाय में लोकप्रिय करने के साथ इस पर अनुसंधान एवं वैज्ञानिक प्रमाणिकता को प्रमुखता दी जाएगी। प्रदेश में राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन के क्रियान्वयन के लिए कृषि विभाग ने सभी हितधारकों के साथ बैठक कर इसकी कार्ययोजना बनाने के लिए काम शुरू कर दिया है।

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क्या है प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती कृषि-बागवानी की एक ऐसी अवधारणा है जो रसायनों के प्रयोग को हतोत्साहित कर, देसी गाय के गोबर-मूत्र और स्थानीय वनस्पतियों पर आधारित आदानों के प्रयोग का अनुमोदन करती है। कम लागत और पर्यावरण के साथ सद्भभाव बनाकर बेहतर उत्पादन देने वाली यह खेती तकनीक किसान की बाजार पर निर्भरता को कम करती है। इस खेती का मूलमंत्र हैः गांव का पैसा गांव में।
प्राकृतिक खेती के चार स्तंभों- बीजामृत (सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा बीजोपचार), जीवामृत एवं घनजीवामृत (खाद का सर्वोत्तम विकल्प जो लाभदायक जीवाणुओं को बढ़ाता है), आच्छादन (फसल अवशेष से मिट्टी की सतह को ढकना) और वाफ्सा (मिट्टी में हवा और नमी को बरकरार रखना) को अपनाकर किसान खेती लागत को कम कर सकते हैं। इस विधि के तहत फसल विविधिकरण पर जोर दिया जाता है और मुख्य फसल के साथ फसल बढ़वार के लिए भूमि में नाइट्रोजन की उपलब्धता बनाए रखने हेतु दलहनी फसलें लगाने पर बल दिया जाता है। देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित विभिन्न आदानों के प्रयोग से देसी केंचुओं की संख्या में वृद्धि कर भूमि की जल धारण करने की शक्ति को बढ़ाया जाता है, जो अंततः भूमि की उर्वरा शक्ति को पुनर्जीवित करता है। फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए स्थानीय वनस्पतियों के साथ लहसुन और हरी मिर्च का प्रयोग किया जाता है।