‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना को देशभर में सराहना मिल रही है। नीति आयोग ने देशभर में प्राकृतिक खेती के क्रियान्वयन हेतू हिमाचल प्रदेश के मॉडल को आधार बनाया है। हिमाचल प्राकृतिक खेती को शुरू कर रहे देश के अलग-अलग राज्यों का भी सहयोग कर रहा है, इनमें गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं।
विभिन्न मंचों पर महामहिम राष्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रियों ने इस योजना की सराहना की है। हाल ही में 17 सितंबर, 2021 को स्वर्णिम हिमाचल के तहत प्रदेश विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने प्रदेश के लोगों से प्राकृतिक खेती अपनाने का आग्रह किया है। उन्होंने कहाः
इसी वर्ष 6 सितंबर को हिमाचलवासियों से संवाद करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने पर बल दिया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहाः
राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई की ओर से भविष्य की मांग एवं मूल्य की श्रृंखला को देखते हुए एक नवोन्वेषी सतत् खाद्य प्रणाली का निर्माण किया जा रहा है। इस प्रणाली के निर्माण के लिए सतत् खाद्य प्रणाली के क्षेत्र में काम कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का मार्गदर्शन एवं सहयोग लिया जा रहा है ताकि किसान को पारदर्शिता के साथ उचित मूल्य मिले एवं उसका सारा उत्पाद खेत से ही बिके। यह प्रणाली किसान एवं उपभोक्ता के बीच परस्पर विश्वास को कायम रखते हुए पारदर्शिता एवं उचित मूल्य के सिद्धांत का भी पालन करेगी। यह प्रणाली तकनीक एवं आधारभूत संरचना को सुदृढ़ करते हुए मांग एवं आपूर्ति की निरंतरता को कायम रखेगी।
योजना के अधीन दुनियाभर में मान्य राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाली एक अनूठी स्व प्रमाणीकरण प्रणाली तैयार की जा रही है जो किसान एवं उपभोक्ता के बीच पारदर्शिता एवं ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करेगी। इस प्रमाणीकरण से बाजार में उत्पाद बेच रहे प्राकृतिक खेती किसान की आसानी से पहचान की जा सकेगी। इस प्रणामीकरण प्रणाली के तहत किसान को हर वर्ष प्रमाणीकरण की जरूरत नहीं रहेगी। यह प्रमाणीकरण पूरी तरह निःशुल्क होगा और पीजीएस द्वारा स्थापित मानकों को भी पूरा करेगा।
प्राकृतिक खेती की सफलता को देखते हुए अब इस विधि से उगाई विविध फसलों के बीज की मांग बढ़ी है। किसानों को उच्च गुणवत्ता का बीज सुनिश्चित करने के लिए राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई एक विस्तृत कार्ययोजना बनाकर काम कर रही है। प्राकृतिक खेती पद्धति से बीजोत्पादन करने पर पारिस्थितिकी एवं किसानों की आर्थिक सुरक्षा होगी और उन्हें आय वृद्धि का अतिरिक्त विकल्प भी मिलेगा।
प्राकृतिक खेती विधि को वैज्ञानिक आधार देने के लिए राज्य में स्थापित 2 कृषि-बागवानी विश्वविद्यालय अनुसंधान कर रहे हैं। विभिन्न फसलों, फलों एवं आनाजों को प्राकृतिक खेती विधि से उगाकर उसकी उत्पादकता, रोग प्रतिरोधकता एवं गुणवत्ता का आकलन किया जा रहा है। योजना के अधीन इसके लिए अलग बजट का प्रावधान किया गया है।
क. प्राकृतिक खेती उत्पाद की मार्केटिंग के लिए कैनोपी- प्रदेशभर में प्राकृतिक खेती कर रहे किसान अपने स्तर पर अपना उत्पाद बेच रहे हैं। ऐसे में उन्हें विशेष पहचान देने एवं स्मार्ट मार्केटिंग के लिए कैनोपी दी जा रही है। यह कैनोपी प्राकृतिक खेती किसान एवं उसके उत्पाद की अलग पहचान बनाने में सहायक होंगी।
ख. प्राकृतिक खेती उत्पाद के आउटलेट- साल के 365 दिन शहरी क्षेत्र के उपभोक्ताओं को प्राकृतिक खेती उत्पाद देने के लिए पायलट आधार पर शिमला शहर में एक आउटलेट खोला जा रहा है जिसकी सफलता के बाद प्रदेशभर में इस मॉडल को अपनाया जाएगा।
ग. किसान-उत्पाद कंपनियां- योजना के अधीन बड़े स्तर पर प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के उत्पादों के विपणन के लिए किसान-उत्पाद कंपनियां बनाने का काम किया जा रहा है। शुरूआती तौर पर 10 कंपनियां बनाई जाएँगी और समय के साथ इनकी संख्या बढ़ाई जायेगी इन कंपनियों में किसान अपने उत्पाद की कीमत खुद निर्धारित करेगा। तकनीक, विपणन, खाद्य प्रसंस्करण और आदान निर्माण के लिए सहायता करने के साथ इन कंपनियों को एक राज्य स्तरीय फेडरेशन के तहत लाया जा रहा है।