भूमि में उपलब्ध नमी को सुरक्षित रखने हेतू इसकी ऊपरी सतह को किसी अन्य फसल या फसलों के अवशेष से ढक दिया जाता है। इस प्रक्रिया से हयूमस' की वृद्धि, भूमि की ऊपरी सतह का संरक्षण, भूमि में जल संग्रहण क्षमता, सूक्ष्म जीवाणुओं तथा पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा में बढ़ोत्तरी के साथ खरपतवार का भी नियंत्रण होता है।
आच्छादन तीन प्रकार का होता है-
मृदा (Soil Mulching)- मृदाच्छादन का अर्थ है भूमि की कम गहरी (4.5 ईंच तक) जुताई। कड़ी धूप या अत्यन्त ठण्ड से भूमि का प्रसारण एवं संकुचन होता है जिस से भूमि में दरारें पड़ती हैं। इन दरारों में से भूमि की नमी वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा हवा में चली जाती है। इससे भूमि की आर्द्रता तेजी से कम हो जाती है जिससे जीवाणु एवं जड़ों के लिए आवश्यक नमी उपलब्द्ध न होने से पत्ते पीले हो कर सूखने लगते हैं। इस नुकसान को कम या समाप्त करने के लिए जुताई से भूमि की सतह पर मिट्टी का आच्छादन करते हैं। इससे नमी सुरक्षित रहती है और पेड़-पौधों को उपलब्ध होती रहती है।
काष्ट आच्छादन (सजीवों के मृत शरीर का आच्छादन) (Straw Mulching) काष्टाच्छादन भूमि में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और जैविक पदार्थ को बढ़ाते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। धान की भूसी, धान की पराली, गन्ने के सूखे पत्ते, सूखी घास, जंगल के पेड़-पौधों के सूखे पत्ते को काष्टाच्छादन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। काष्टाच्छादन सबसे अच्छा खरपतवार नाशक का कार्य करता है।
सजीव आच्छादन (Live Mulching) सजीव आच्छादन का अर्थ है मुख्य फसलों के साथ ली गई सह-फसल द्वारा मुख्य फसल। यह भूमि की नमी को सुरक्षित रखता है, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा कर उत्पादन एवं लाभांश को बढ़ाता है। अगर मुख्य फसल एक दल है तो सह-फसल द्विदल होनी चाहिए और अगर मुख्य फसल द्विदल है तो सह-फसल एक दल होनी चाहिए। यदि मुख्य फसल की जड़ें अधिक गहराई में जाने वाली हों तो सह-फसल ऐसी होनी चाहिए जिसकी जड़ें केवल सतह पर फैलें। सह फसलें तेज गति के साथ बढ़ने वाली एवं भूमि को ढकने वाली होनी चाहिए।