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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई 

बीजामृत

बीजामृत

किसी भी फसल या फल-पौधे की उत्पादन क्षमता उसके बीज, पौध या कंद के निरोग होने पर निर्भर करती है। फसलों के बहुत से रोग, कीट या अन्य विकार बीज के माध्यम से ही आते हैं। अत: आवश्यक है कि इन्हें लगाने से पहले इनका संस्कार हो ताकि विभिन्‍न प्रकार के बीज, पौध, कंद या पौध जनित रोग, कीट या अन्य विकार फसल-पौधों को नुकसान न करें।

बीजामृत देसी गाय के गोबर, मूत्र एवं बुझा चूना आधारित घटक से बीज एवं पोष-जड़ों पर सूक्ष्म जीवाणु आधारित लेप करके इनकी नई जड़ों को बीज या भूमि जनित रोगों से संरक्षित किया जाता है। बीजामृत प्रयोग से बीज की अंकुरण क्षमता में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है।

बीजामृत के लाभ
  • विभिन्न रोगों से बचाव के लिए बीज शोधन के साथ अंकुरण शक्ति को बढ़ाता है।
  • बीज की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाता है ताकि पौधों के मरने की दर कम हो सके।
  • फसल प्रतिशतता को बेहतर करता है।

सामग्री

10 किलोग्राम बीज संस्कार के लिए बीजामृत हेतु सामग्री (गेहूँ , धान इत्यादि फसलों के बीज )
  • 2 ली०
  • 500 मि० ली०
  • 500 ग्राम
  • 1 चुटकी (5 ग्राम - 3 उँगलियों में आने वाली मात्रा )
  • 1 चुटकी (5 ग्राम - 3 उँगलियों में आने वाली मात्रा )
2 किलोग्राम बीज संस्कार के लिए बीजामृत हेतु सामग्री (दाल वर्गीय फसलों के बीज)
  • 400 मि० ली० (आधा लीटर से 1 चाय कप जितना कम)
  • 100 मि०ली० (1 चाय कप जितना)
  • 400 ग्राम (1 चाय कप में आने वाली मात्रा)
  • 1 ग्राम (सीधे हाथ की सबसे छोटी उंगली कनिष्ठा के आगे वाले हिस्से के ऊपर जितना आए उतना)
  • 1 ग्राम (सीधे हाथ की सबसे छोटी उंगली कनिष्ठा के आगे वाले हिस्से के ऊपर जितना आए उतना)

विधि :

  • सबसे पहले एक प्लास्टिक के टब में 2 लीटर पानी डालो
  • फिर बारी-बारी ये सारी सामग्री डालती जाओ।
  • अब इसे लकड़ी के डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में 2-3 मिनट घुमाकर मिला दो। इस घोल को फिर जूट की बोरी से ढ़क कर रात भर के लिए रख दें।
  • इस तैयार घोल को 2-3 मिनट के लिए फिर सुई की दिशा में घोलना है। इसके बाद समझो की बीजामृत बनकर तैयार हो गया।
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