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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई 

जीवामृत

जीवामृत

जीवामृत कोई खाद नहीं है। यह तो असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओं का एक विशाल भंडार है। ये सूक्ष्म जीवाणु, जमीन में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध अवस्था में बदलकर इन्हें प्रयोग में लाने योग्य बनाते हैं। दूसरे शब्दों में ये सूक्ष्म जीवाणु भोजन बनाने का कार्य करते हैं। अतः जीवामृत अनंत करोड़ लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं का सर्वोत्तम जामन है।

जीवामृत के लाभ
  • पौधे को जरूरी पोषक तत्वों की उपलब्धता करना।
  • भूमि में सूक्ष्म जीवाणुओं और मित्रकीटों की संख्या में वृद्धि करना।
  • फल-सब्जी के पौधों की बढ़वार को बढ़ाने के साथ गणवत्ता को बेहतर करता है।
  • भूमि की उर्वरा शक्ति को बेहतर करता है।
  • खट्टी लस्सी के साथ जीवामृत के घोल को रोगनाशी दवाई के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

सामग्री

  • 40 ली०
  • 2 लीटर
  • 2 किलोग्राम
  • 200 ग्राम
  • 200 ग्राम
  • 5 ग्राम (1 चुटकी)

विधि :

  • एक ड्रम में 40 लीटर पानी डालकर और फिर बारी-बारी से इसमें पहले देसी गाय का गोबर फिर गोमूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी को ऊपर दी गई तय मात्रा में डाल दें ।
  • लकड़ी के डंडे से इस सारी सामग्री को घड़ी की सुई की दिशा में 2-3 मिनट तक घोलें। बाद में इसे जूट की बोरी के साथ ढ़क दें ।
  • अब हम इस तैयार घोल को रोजाना 3 दिन तक सुबह-शाम 2-3 मिनट के लिए घड़ी की सुई की दिशा में घोलते रहेंगे।
  • 3 दिन के बाद तैयार जीवामृत को सूती कपड़े से छानकर किसी घड़े या ड्रम में भंडारण करें। यदि इसे ड्रीप या स्प्रींकलर विधि से प्रयोग करना है तो 2 बार छानकर रखें।
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इस तैयार जीवामृत को खेत में 2 सप्ताह तक प्रयोग कर सकते हैं।
  • 40 लीटर जीवामृत को 1 बीघा जमीन पर छिड़काव करें या सिंचाई के पानी के साथ दें। बागवानी में 2 पौधों के बीच में नाली बनाकर भी तय मात्रा में इसे दिया जाता है।
  • गुड़ के स्थान पर गन्ने का रस- 1 ली० या गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े- 2 कि०ग्रा० या मीठे फलों का गुद्दा-200 ग्रा० का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • बेसन या किसी भी दाल (मूंगफली, सोयाबीन, मटर एंव उड़द को छोड़कर) का प्रयोग कर सकते हैं।
  • गोबर और मूत्र केवल देसी गाय का ही होना चाहिए।
  • गोबर जितना ताजा और मूत्र जितना पूराना उतना ही अच्छा |