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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई 

वाफसा

वाफसा

वाफसा (भूमि में वायु प्रवाह), भूमि में जीवामृत प्रयोग तथा आच्छादन का परिणाम है। जीवामृत के प्रयोग तथा आच्छादन करने से भूमि की संरचना में सुधार होकर त्वरित गति से 'हयूमस' निर्माण होता है। इस से अन्ततः भूमि में अच्छे जल प्रबंधन की प्रक्रिया आरम्भ होती है। भूमि के अंदर मिट्टी के 2 कणों के बीच जो खाली जगह होती है उसमें पानी का अस्तित्व नहीं होना चाहिए। पौधों के बेहतर विकास के लिए मिट्टी के दो कणों के बीच वाष्प और हवा का सम्मिश्रण 50-50 प्रतिशत होना चाहिए। इसी स्थिति को वास्तव में वाफसा कहते हैं। यदि हम जड़ों के पास मिट्टी के इन कणों को पानी से भर देते हैं तो हवा उपर से ही निकल जाती है जिस कारण फसल सूखी पड़कर खत्म हो जाती है। वाफसा के होने से फसल न तो अधिक वर्षा-तूफान में गिरती है और न ही सूखे की स्थिति में डगमगाती है।

वाफसा का निर्माण कैसे करें- किसी भी पेड़-पौधे की दोपहर को 12 बजे जो छाया पड़ती है, उसके अंतिम सीमा पर वाफसा लेने वाली जड़ होती है। छाया के अंदर वाफसा लेने वाली जड़ नहीं होती। जब बारिश या सिंचाई से पानी छाया के अंदर भरता है तो वाफसा का निर्माण नहीं होता बल्कि जड़ें सड़ जाती हैं। इस नुकसान से बचाव के लिए छाया की सीमा से तने तक मिट्टी चढ़ाएं, जिस से पानी निकल जाए। छाया की सीमा पर पानी देने पर जड़ों को कितना वाफसा चाहिए यह हम पर निर्भर करता है, जड़ पर नहीं। लेकिन यह अधिकार जड़ का है। इसका मतलब है कि सीमा पर पानी देने से वाफसा निर्माण नहीं होता, लेकिन जब आप सीमा के 6 इंच बाहर पानी देते हो तो जड़ वाफसा के लिए उस नाली तक जाकर अपनी आवश्यकता के अनुसार पानी ले लेती है। अगर सीमा के बाहर नाली की जड़ें नहीं निकली तो जड़ों के पास अतिरिक्त पानी संगृहीत होता है और वाफसा का निर्माण नहीं होता। लेकिन नाली निकालने पर ऊंचाई का पानी नाली में चला जाता है और वाफसा का निर्माण होता है।

वाफसा के लाभ

  • फसल वृद्धि के लिए पानी एवं विभिन्न आदानों के साथ भूमि में वायु प्रवाह को सुनिश्चित करता है।
  • फसल के लिए पानी एवं सिंचाई की आवश्यकता को कम करता है।
  • पौधे की जड़ों को सड़ने से बचाता है और बढ़वार को बढ़ाता है।
  • केशाकर्षण शक्ति को बढ़ाकर जड़ों का विस्तार करता है जो पौधे को सशक्त बनाता है।