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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई 

सफलता की कहानियां

मोहन सिंह

विदेश में नौकरी के मुकाबले गांव में खेती से पा रहे अधिक कमाई
परिचय

विदेश में नौकरी के चाहवान युवाओं के लिए नूरपुर के किसान मोहन सिंह ने गांव में ही खेती का उत्कृष्ट मॉडल खड़ा कर रोजगार की राह प्रदान की है। चरूड़ी पंचायत के गटोत गांव के रहने वाले युवा किसान मोहन सिंह कतर और सउदी अरब में नौकरी कर रहे थे, लेकिन परिवार से दूर होने के चलते उन्होंने वहां नौकरी छोड़ी और घर वापसी कर खेती शुरू की। मोहन बताते हैं कि पहले उन्होंने रसायनिक खेती शुरू की थी जिसमें उन्हें पैदावार तो अच्छी मिली लेकिन खर्चा भी अधिक आ रहा था। इसके बाद मोहन वर्ष 2018 में प्राकृतिक खेती जुड़े और आज वे खेती में अपनी कृषि लागत को तीन गुणा कम कर 8 लाख सालाना कमाई कर रहे हैं। गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के विकास खंड नूरपुर में बाकी विकास खंडों की तुलना में थोड़ी कठिन भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियां आम जनजीवन के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। इस इलाके में ज्यादातर लोग पानी की समस्या से जूझने के कारण मौसमी फसल उगाने में ही रुचि रखते है। लेकिन विकट परिस्थितियों में भी मोहन सिंह ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर न सिर्फ अपनी कृषि लागत को कम किया बल्कि पैदावार में भी बढ़ोतरी कर अपने मुनाफे को कई गुणा बढ़ाकर अन्य किसानों के सामने उदाहरण पेश किया है।
मोहन सिंह बताते हैं कि शुरू में प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों के कम रूझान को देखते हुए उनके मन में भी कुछ सवाल उठे थे, लेकिन जब खेत में जीवामृत और दूसरे अन्य आदानों खास कर दशपर्णी अर्क के जब परिणाम देखे तो वे उनसे उत्साहित हो गए।
मोहन सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती के आदानों का प्रयोग करने से मटर में लगने वाले रोग पाउडरी मिल्ड्यू , गोभी में सूंडियों की समस्या और कीटों पर नियंत्रण हो गया, साथ ही भिंडी में प्ररोह एवम फल छेदक की समस्या से भी निजात बहुत तेजी से हुआ। वे कहते हैं कि प्राकृतिक खेती में फसलें अधिक समय तक टिकी रहती हैं और उत्पादन भी पहले की तुलना में बेहतर हो रहा है।
मोहन सिंह अब अनाज और सब्जियों के अलावा अपने आम के बाग और अन्य फलों में भी प्राकृतिक खेती को अपनाने जा रहे हैं। मोहन सिंह गांव के अन्य किसानों को भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती से फसलों की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ी है। रसायनिक खेती में जिन रोगों की रोकथाम नहीं हो पाती थी, वह प्राकृतिक खेती से हो रही है।

विस्तृत विवरण

गांव गटोत, पंचायत चरूड़ी, विकास खण्ड नूरपुर, जिला कांगड़ा

  • 84 कनाल (42 बीघा)
  • 40 कनाल (20 बीघा)
  • खीरा, फ्रासबीन, गोभी, मटर, मूली, शलगम, धनिया, पालक, अन्य
रासायनिक खेती में प्राकृतिक खेती में
व्यय 150,000/- व्यय 50,000/-
आय 7,00000/- आय 8,00000/-