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  • सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
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  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई 

सफलता की कहानियां

सत्या देवी

प्राकृतिक खेती की थामी पतवार, बागवानों के लिए सत्या देवी बनी मिसाल
परिचय

शिमला जिला के लाफूघाटी गांव की सत्या देवी बागवानों के लिए मिसाल बनकर उभरी हैं। विकास खण्ड ठियोग से संबंध रखने वाली सत्या देवी 2018 से प्राकृतिक खेती विधि का प्रयोग सफलतापूर्वक अपने बागीचे में कर रही हैं। पिछले 3 दशकों से 2 बीघा के बागीचे को अकेले संभाल रही सत्या देवी गांव के अन्य बागवानों की तरह अपने बागीचे में रसायनों का अनरवत प्रयोग कर रही थीं लेकिन इस विधि के दौरान उन्हें कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
कीटनाशकों के छिड़काव के बाद अक्सर उन्हें सरदर्द और एलर्जी की शिकायत रहती थी। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए उन्होंने हजारों रूपए की दवाइयां खायीं लेकिन यह समस्या ज्यादा बढ़ गई और डॉक्टर ने उन्हें कीटनाशकों का छिड़काव बंद करने के लिए कहा। क्षेत्र में प्रचलित रसायनिक विधि का विकल्प तलाश रही सत्या देवी को ब्लॉक स्तर पर तैनात कृषि अधिकारियों से प्राकृतिक खेती विधि के बारे में जानकारी मिली। सत्या देवी ने इस विधि को अपनाने की ठान ली और वर्ष 2018 में पंचायत में लगे 2 दिवसीय शिविर में हिस्सा लिया। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अपने बागीचे के चुनिंदा पौधों में प्राकृतिक खेती आदानों जीवामृत, घनजीवामृत, सोंठास्त्र, दशपर्णी अर्क और सप्तधान्यांकुर अर्क का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। देसी गाय के गोबर और गोमूत्र आधारित इन आदानों के परिणामों से संतुष्ट होकर उन्होंने वर्ष 2019 में कृषि विभाग के अधिकारियो की देख- रेख में पूरे बगीचे को प्राकृतिक खेती में परिवर्तित कर दिया। अभी सत्या देवी अपने 2 बीघा के बागीचे में सेब के 160 पौधों पर प्राकृतिक खेती विधि आदानों का प्रयोग कर रही हैं। प्राकृतिक खेती के सह-फसल सिद्धांत का पालन करते हुए सत्या देवी ने बागीचे में मटर, राजमाश, फ्रासबीन और धनिया उगाया है जिसकी इन्हें अच्छी पैदावार मिली है।
सत्या देवी ने बताया कि इस विधि में पहले ही साल से उनकी बागवानी लागत कम हुई है। रसायनिक में उनको 20 हजार की खाद और कीटनाशकों की खरीद करनी पड़ती थी जो अब बंद हो गई है। इससे पैसे की बचत हो रही है। सत्या देवी ने बताया कि इस साल क्षेत्र के बागीचों में स्कैब और आकस्मिक पतझड़ रोग आया है। रसायनिक विधि से बागवानी कर रहे बागवानों को इससे काफी नुक्सान हुआ है। वहीं प्राकृतिक खेती से इन रोगों पर नियंत्रण हुआ है। जीवामृत और फफूंदनाशी खट्टी लस्सी के प्रयोग से स्कैब और आकस्मिक पतझड़ रोकने में सफलता मिली है। जिन पौधों में यह बीमारी आई थी वहां इन आदानों का इस्तेमाल करने से रोग का फैलाव रूक गया। सत्या देवी को देखकर आस-पास के बागवान भी प्रोत्साहित हो रहे हैं और उनके बागीचे में लगातार पहुंच रहे हैं। बागवानों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी उनके बागीचे में पहुंच कर इस विधि का चमत्कार देख रहे हैं। हाल ही में ठियोग के उपमंडलाधिकारी ने सत्या देवी के बागीचे का निरीक्षण किया और उनके कड़े परिश्रम की तारीफ की। कृषि विभाग की तरफ से सत्या देवी को संसाधन भंडार भी मिला है जिससे वह प्राकृतिक खेती में रूचि रखने वाले नए बागवानों को आदान दे रही हैं।
कोट- मैं जब भी किसी फंक्शन में जाती हूं तो लोग मुझसे प्राकृतिक खेती के बारे में पूछते हैं। मैं उन्हें इस विधि के जानकारी देती हूं और अपने बागीचे में आने का न्योता भी देती हूं।

विस्तृत विवरण

गांव लाफूघाटी, पंचायत संदू, विकास खण्ड ठियोग, जिला शिमला

  • 2 बीघा
  • 2 बीघा
  • 2,300 मीटर
  • गोल्डन, रेड गोल्डन, रॉयल
  • मटर, फ्रासबीन, आलू, धनिया, राजमाश
रासायनिक खेती में प्राकृतिक खेती में
खर्च 20,000 खर्च 2000
आमदनी 1,00,000 आमदनी 1,15,000